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Hindi kahaniyanStory in hindi

Hindi kahani#2

बच्चों के लिए फनी स्टोरी का अपना अलग महत्व है। ऐसी कहानियों से बच्चे हंसते-खिलखिलाते हुए पढ़ाई में रुचि लेते हैं और हर काम को उत्सुकता के साथ करते हैं। बच्चों के लिए मजेदार कहानियां न सिर्फ उनका मनोरंजन करती हैं, बल्कि उनके बौद्धिक विकास में भी मदद करती हैं। यही वजह है कि हम कहानियों के फनी स्टोरी सेक्शन में छोटे बच्चों के लिए मजेदार कहानियों का संग्रह लेकर आए हैं।यहां आपको वे कहानियां भी मिलेंगी, जिन्हें पढ़कर या सुनकर कई पीढ़ियां बड़ी हुई हैं। फनी इंस्पिरेशनल स्टोरीज इसलिए भी महत्व रखती हैं, क्योंकि ये आज दौर में बच्चों को खुलकर हंसने का मौका देती हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि प्रतिस्पर्धा के इस दौर में बच्चों पर हमेशा आगे रहने का दबाव इस कदर है कि उनका बचपन कहीं खोता जा रहा है। इसके अलावा, इन कहानियों के जरिए आप अपने बच्चों के प्रति स्नेह भी व्यक्त कर सकते हैं। इससे बच्चा भी खुश रहेगा और माता-पिता के साथ उसका सकारात्मक जुड़ाव भी बढ़ेगा। तो आइए, अपने लाल के बचपन को स्वस्थ और यादगार बनाने के लिए आज से ही उसे रोज एक मजेदार कहानी यहां से पढ़कर सुनाएं।

Hindi kahani

Table of Contents



: बच्चे कहानी सुनना और पढ़ना बहोत अच्छा लगता है। नैतिक कहानियां, डरावनी नी कहानियां, बच्चों के लिए मज़ेदार कहानियाँसुपर हीरो की कहानियांरात को सोने से पहले सुननेवाली कहानियांछोटे बच्चो की कहानियां ओर भी कई तरह की कहानियां होती है। जो बच्चो को अच्छी लगती है।

आपस की फूट

प्राचीन समय में एक विचित्र पक्षी रहता था। उसका धड एक ही था, परन्तु सिर दो थे नाम था उसका भारुंड। एक शरीर होने के बावजूद उसके सिरों में एकता नहीं थी और न ही था तालमेल। वे एक दूसरे से बैर रखते थे। हर जीव सोचने समझने का काम दिमाग से करता हैं और दिमाग होता हैं सिर में दो सिर होने के कारण भारुंड के दिमाग भी दो थे। जिनमें से एक पूरब जाने की सोचता तो दूसरा पश्चिम फल यह होता था कि टांगें एक कदम पूरब की ओर चलती तो अगला कदम पश्चिम की ओर और भारूंड स्वयं को वहीं खडा पाता ता। भारुंड का जीवन बस दो सिरों के बीच रस्साकसी बनकर रह गया था।
एक दिन भारुंड भोजन की तलाश में नदी तट पर धूम रहा था कि एक सिर को नीचे गिरा एक फल नजर आया। उसने चोंच मारकर उसे चखकर देखा तो जीभ चटकाने लगा “वाह! ऐसा स्वादिष्ट फल तो मैंने आज तक कभी नहीं खाया। भगवान ने दुनिया में क्या-क्या चीजें बनाई हैं।”

“अच्छा! जरा मैं भी चखकर देखूं।” कहकर दूसरे ने अपनी चोंच उस फल की ओर बढाई ही थी कि पहले सिर ने झटककर दूसरे सिर को दूर फेंका और बोला “अपनी गंदी चोंच इस फल से दूर ही रख। यह फल मैंने पाया हैं और इसे मैं ही खाऊंगा।”

“अरे! हम् दोनों एक ही शरीर के भाग हैं। खाने-पीने की चीजें तो हमें बांटकर खानी चाहिए।” दूसरे सिर ने दलील दी। पहला सिर कहने लगा “ठीक! हम एक शरीर के भाग हैं। पेट हमार एक ही हैं। मैं इस फल को खाऊंगा तो वह पेट में ही तो जाएगा और पेट तेरा भी हैं।”

दूसरा सिर बोला “खाने का मतलब केवल पेट भरना ही नहीं होता भाई। जीभ का स्वाद भी तो कोई चीज हैं। तबीयत को संतुष्टि तो जीभ से ही मिलती हैं। खाने का असली मजा तो मुंह में ही हैं।”

पहला सिर तुनकर चिढाने वाले स्वर में बोला “मैंने तेरी जीभ और खाने के मजे का ठेका थोडे ही ले रखा हैं। फल खाने के बाद पेट से डकार आएगी। वह डकार तेरे मुंह से भी निकलेगी। उसी से गुजारा चला लेना। अब ज्यादा बकवास न कर और मुझे शांति से फल खाने दे।” ऐसा कहकर पहला सिर चटकारे ले-लेकर फल खाने लगा।

इस घटना के बाद दूसरे सिर ने बदला लेने की ठान ली और मौके की तलाश में रहने लगा। कुछ दिन बाद फिर भारुंड भोजन की तलाश में घूम रहा था कि दूसरे सिर की नजर एक फल पर पडी। उसे जिस चीज की तलाश थी, उसे वह मिल गई थी। दूसरा सिर उस फल पर चोंच मारने ही जा रहा था कि कि पहले सिर ने चीखकर चेतावनी दी “अरे, अरे! इस फल को मत खाना। क्या तुझे पता नहीं कि यह विषैला फल हैं? इसे खाने पर मॄत्यु भी हो सकती है।”

दूसरा सिर हंसा “हे हे हे! तु चुपचाप अपना काम देख। तुझे क्या लेना हैं कि मैं क्या खा रहा हूं? भूल गया उस दिन की बात?”

पहले सिर ने समझाने कि कोशिश की “तुने यह फल खा लिया तो हम दोनों मर जाएंगे।”

दूसरा सिर तो बदला लेने पर उतारु था। बोला “मैने तेरे मरने-जीने का ठेका थोडे ही ले रखा हैं? मैं जो खाना चाहता हूं, वह खाऊंगा चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। अब मुझे शांति से विषैला फल खाने दे।”

दूसरे सिर ने सारा विषैला फल खा लिया और भारुंड तडप-तडपकर मर गया।

सीखः आपस की फूट सदा ले डूबती हैं।

 

एक और एक ग्यारह

एक बार की बात हैं कि बनगिरी के घने जंगल में एक उन्मुत्त हाथी ने भारी उत्पात मचा रखा था। वह अपनी ताकत के नशे में चूर होने के कारण किसी को कुछ नेहीं समझता था।

बनगिरी में ही एक पेड पर एक चिडिया व चिडे का छोटा-सा सुखी संसार था। चिडिया अंडो पर बैठी नन्हें-नन्हें प्यारे बच्चों के निकलने के सुनहरे सपने देखती रहती। एक दिन क्रूर हाथी गरजता, चिंघाडता पेडों को तोडता-मरोडता उसी ओर आया। देखते ही देखते उसने चिडिया के घोंसले वाला पेड भी तोड डाला। घोंसला नीचे आ गिरा। अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी का पैर उस पर पडा।

चिडिया और चिडा चीखने चिल्लाने के सिवा और कुछ न कर सके। हाथी के जाने के बाद चिडिया छाती पीट-पीटकर रोने लगी। तभी वहां कठफोठवी आई। वह चिडिया की अच्छी मित्र थी। कठफोडवी ने उनके रोने का कारण पूछा तो चिडिया ने अपनी सारी कहानी कह डाली। कठफोडवी बोली “इस प्रकार गम में डूबे रहने से कुछ नहीं होगा। उस हाथी को सबक सिखाने के लिए हमे कुछ करना होगा।”

चिडिया ने निराशा दिखाई “हमें छोटे-मोटे जीव उस बलशाली हाथी से कैसे टक्कर ले सकते हैं?”

कठफोडवी ने समझाया “एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। हम अपनी शक्तियां जोडेंगे।”

“कैसे?” चिडिया ने पूछा।

“मेरा एक मित्र वींआख नामक भंवरा हैं। हमें उससे सलाह लेना चाहिए।” चिडिया और कठफोडवी भंवरे से मिली। भंवरा गुनगुनाया “यह तो बहुत बुरा हुआ। मेरा एक मेंढक मित्र हैं आओ, उससे सहायता मांगे।”

अब तीनों उस सरोवर के किनारे पहुंचे, जहां वह मेढक रहता था। भंवरे ने सारी समस्या बताई। मेंढक भर्राये स्वर में बोला “आप लोग धैर्य से जरा यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। मैं गहरे पाने में बैठकर सोचता हूं।”

ऐसा कहकर मेंढक जल में कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी से बाहर आया तो उसकी आंखे चमक रही थी। वह बोला “दोस्तो! उस हत्यारे हाथी को नष्ट करने की मेरे दिमाग में एक बडी अच्छी योजना आई हैं। उसमें सभी का योगदान होगा।”

मेंढक ने जैसे ही अपनी योजना बताई,सब खुशी से उछल पडे। योजना सचमुच ही अदभुत थी। मेंढक ने दोबारा बारी-बारी सबको अपना-अपना रोल समझाया।

कुछ ही दूर वह उन्मत्त हाथी तोडफोड मचाकर व पेट भरकर कोंपलों वाली शाखाएं खाकर मस्ती में खडा झूम रहा था। पहला काम भंवरे का था। वह हाथी के कानों के पास जाकर मधुर राग गुंजाने लगा। राग सुनकर हाथी मस्त होकर आंखें बंद करके झूमने लगा।

तभी कठफोडवी ने अपना काम कर दिखाया। वह् आई और अपनी सुई जैसी नुकीली चोंच से उसने तेजी से हाथी की दोनों आंखें बींध डाली। हाथी की आंखे फूट गईं। वह तडपता हुआ अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा।

जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का क्रोध बढता जा रहा था। आंखों से नजर न आने के कारण ठोकरों और टक्करों से शरीर जख्मी होता जा रहा था। जख्म उसे और चिल्लाने पर मजबूर कर रहे थे।

चिडिया कॄतज्ञ स्वर में मेढक से बोली “बहिया, मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी। तुमने मेरी इतनी सहायता कर दी।”

मेढक ने कहा “आभार मानने की जरुरत नहीं। मित्र ही मित्रों के काम आते हैं।”

एक तो आंखों में जलन और ऊपर से चिल्लाते-चिंघाडते हाथी का गला सूख गया। उसे तेज प्यास लगने लगी। अब उसे एक ही चीज की तलाश थी, पानी।

मेढक ने अपने बहुत से बंधु-बांधवों को इकट्ठा किया और उन्हें ले जाकर दूर बहुत बडे गड्ढे के किनारे बैठकर टर्राने के लिए कहा। सारे मेढक टर्राने लगे।

मेढक की टर्राहट सुनकर हाथी के कान खडे हो गए। वह यह जानता ता कि मेढक जल स्त्रोत के निकट ही वास करते हैं। वह उसी दिशा में चल पडा।

टर्राहट और तेज होती जा रही थी। प्यासा हाथी और तेज भागने लगा।

जैसे ही हाथी गड्ढे के निकट पहुंचा, मेढकों ने पूरा जोर लगाकर टर्राना शुरु किया। हाथी आगे बढा और विशाल पत्थर की तरह गड्ढे में गिर पडा, जहां उसके प्राण पखेरु उडते देर न लगे इस प्रकार उस अहंकार में डूबे हाथी का अंत हुआ।

सीखः 1.एकता में बल हैं।
2.अहंकारी का देर या सबेर अंत होता ही हैं।

एकता का बल

एक समय की बात हैं कि कबूतरों का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उडता हुआ जा रहा था। गलती से वह दल भटककर ऐसे प्रदेश के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर अकाल पडा था। कबूतरों का सरदार चिंतित था। कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी। शीघ्र ही कुछ दाना मिलना जरुरी था। दल का युवा कबूतर सबसे नीचे उड रहा था। भोजन नजर आने पर उसे ही बाकी दल को सुचित करना था। बहुत समय उडने के बाद कहीं वह सूखाग्रस्त क्षेत्र से बाहर आया। नीचे हरियाली नजर आने लगी तो भोजन मिलने की उम्मीद बनी। युवा कबूतर और नीचे उडान भरने लगा। तभी उसे नीचे खेत में बहुत सारा अन्न बिखरा नजर आया “चाचा, नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा पडा हैं। हम सबका पेट भर जाएगा।’

सरदार ने सूचना पाते ही कबूतरों को नीचे उतरकर खेत में बिखरा दाना चुनने का आदेश दिया। सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। वास्तव में वह दाना पक्षी पकडने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फंस गए।

कबूतरों के सरदार ने माथा पीटा “ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख ने मेरी अक्ल पर पर्दा डाल दिया था। मुझे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरा होने का कोई मतलब हैं। अब पछताए होत क्या, जब चिडिया चुग गई खेत?”

एक कबूतर रोने लगा “हम सब मारे जाएंगे।”

बाकी कबूतर तो हिम्मत हार बैठे थे, पर सरदार गहरी सोच में डूबा था। एकाएक उसने कहा “सुनो, जाल मजबूत हैं यह ठीक हैं, पर इसमें इतनी भी शक्ति नहीं कि एकता की शक्ति को हरा सके। हम अपनी सारी शक्ति को जोडे तो मौत के मुंह में जाने से बच सकते हैं।”

युवा कबूतर फडफडाया “चाचा! साफ-साफ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो। जाल ने हमें तोड रखा हैं, शक्ति कैसे जोडे?”

सरदार बोला “तुम सब चोंच से जाल को पकडो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ जोर लगाकर उडना।”

सबने ऐसा ही किया। तभी जाल बिछाने वाला बहेलियां आता नजर आया। जाल में कबूतर को फंसा देख उसकी आंखें चमकी। हाथ में पकडा डंडा उसने मजबूती से पकडा व जाल की ओर दौडा।

बहेलिया जाल से कुछ ही दूर था कि कबूतरों का सरदार बोला “फुर्रर्रर्र!”

सारे कबूतर एक साथ जोर लगाकर उडे तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उडने लगे। कबूतरों को जाल सहित उडते देखकर बहेलिया अवाक रह गया। कुछ संभला तो जाल के पीछे दौडने लगा। कबूतर सरदार ने बहेलिए को नीचे जाल के पीछे दौडते पाया तो उसका इरादा समझ गया। सरदार भी जानता था कि अधिक देर तक कबूतर दल के लिए जाल सहित उडते रहना संभव न होगा। पर सरदार के पास इसका उपाय था। निकट ही एक पहाडी पर बिल बनाकर उसका एक चूहा मित्र रहता था। सरदार ने कबूतरों को तेजी से उस पहाडी की ओर उडने का आदेश दिया। पहाडी पर पहुंचते ही सरदार का संकेत पाकर जाल समेत कबूतर चूहे के बिल के निकट उतरे।

सरदार ने मित्र चूहे को आवाज दी। सरदार ने संक्षेप में चूहे को सारी घटना बताई और जाल काटकर उन्हें आजाद करने के लिए कहा। कुछ ही देर में चूहे ने वह जाल काट दिया। सरदार ने अपने मित्र चूहे को धन्यवाद दिया और सारा कबूतर दल आकाश की ओर आजादी की उडान भरने लगा।

कौए और उल्लू

बहुत समय पहले की बात हैं कि एक वन में एक विशाल बरगद का पेड कौओं की राजधानी था। हजारों कौए उस पर वास करते थे। उसी पेड पर कौओं का राजा मेघवर्ण भी रहता था।

बरगद के पेड के पास ही एक पहाडी थी, जिसमें असंख्य गुफाएं थीं। उन गुफाओं में उल्लू निवास करते थे, उनका राजा अरिमर्दन था। अरिमर्दन बहुत पराक्रमी राजा था। कौओं को तो उसने उल्लुओं का दुश्मन नम्बर एक घोषित कर्र रखा था। उसे कौओं से इतनी नफरत थी कि किसी कौए को मारे बिना वह भोजन नहीं करता था।

जब बहुत अधिक कौए मारे जाने लगे तो उनके राजा मेघवर्ण को बहुत चिन्ता हुई। उसने कौओं की एक सभा इस समस्या पर विचार करने के लिए बुलाई। मेघवर्ण बोला “मेरे प्यारे कौओ, आपको तो पता ही हैं कि उल्लुओं के आक्रमणों के कारण हमारा जीवन असुरक्षित हो गया हैं। हमारा शत्रु शक्तिशाली हैं और अहंकारी भी। हम पर रात को हमले किए जाते हैं। हम रात को देख नहीं पाते। हम दिन में जवाबी हमला नहीं कर पाते, क्योंकि वे गुफाओं के अंधेरों में सुरक्षित बैठे रहते हैं।”

फिर मेघवर्ण ने स्याने और बुद्धिमान कौओं से अपने सुझाव देने के लिए कहा।

एक डरपोक कौआ बोला “हमें उल्लूं से समझौता कर लेना चाहिए। वह जो शर्ते रखें, हम स्वीकार करें। अपने से तकतवर दुश्मन से पिटते रहने में क्या तुक है?”

बहुत-से कौओं ने कां कां करके विरोध प्रकट किया। एक गर्म दिमाग का कौआ चीखा “हमें उन दुष्टों से बात नहीं करनी चाहिए। सब उठो और उन पर आक्रमण कर दो।”

एक निराशावादी कौआ बोला “शत्रु बलवान हैं। हमें यह स्थान छोडकर चले जाना चाहिए।”

स्याने कौए ने सलाह दी “अपना घर छोडना ठीक नहीं होगा। हम यहां से गए तो बिल्कुल ही टूट जाएंगे। हमे यहीं रहकर और पक्षियों से सहायता लेनी चाहिए।”

कौओं में सबसे चतुर व बुद्धिमान स्थिरजीवी नामक कौआ था, जो चुपचाप बैठा सबकी दलीलें सुन रहा था। राजा मेघवर्ण उसकी ओर मुडा “महाशय, आप चुप हैं। मैं आपकी राय जानना चाहता हूं।”

स्थिरजीवी बोला “महाराज, शत्रु अधिक शक्तिशाली हो तो छलनीति से काम लेना चाहिए।”

“कैसी छलनीति? जरा साफ-साफ बताइए, स्थिरजीवी।” राजा ने कहा।

स्थिरजीवी बोला “आप मुझे भला-बुरा कहिए और मुझ पर जानलेवा हमला कीजिए।’

मेघवर्ण चौंका “यह आप क्या कह रहे हैं स्थिरजीवी?”

स्थिरजीवी राजा मेघवर्ण वाली डाली पर जाकर कान मे बोला “छलनीति के लिए हमें यह नाटक करना पडेगा। हमारे आसपास के पेडों पर उल्लू जासूस हमारी इस सभा की सारी कार्यवाही देख रहे हैं। उन्हे दिखाकर हमें फूट और झगडे का नाटक करना होगा। इसके बाद आप सारे कौओं को लेकर ॠष्यमूक पर्वत पर जाकर मेरी प्रतीक्षा करें। मैं उल्लुओं के दल में शामिल होकर उनके विनाश का सामान जुटाऊंगा। घर का भेदी बनकर उनकी लंका ढाऊंगा।”

फिर नाटक शुरु हुआ। स्थिरजीवी चिल्लाकर बोला “मैं जैसा कहता हूं, वैसा कर राजा कर राजा के बच्चे। क्यों हमें मरवाने पर तुला हैं?”

मेघावर्ण चीख उठा “गद्दार, राजा से ऐसी बदतमीजी से बोलने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?”कई कौए एक साथ चिल्ला उठे “इस गद्दार को मार दो।”

राजा मेघवर्ण ने अपने पंख से स्थिरजीवी को जोरदार झापड मारकर तनी से गिरा दिया और घोषणा की “मैं गद्दार स्थिरजीवी को कौआ समाज से निकाल रहा हूं। अब से कोई कौआ इस नीच से कोई संबध नेहीं रखेगा।”

आसपास के पेडों पर छिपे बैठे उल्लू जासूसों की आंखे चमक उठी। उल्लुओं के राजा को जासूसों ने सूचना दी कि कौओं में फूट पड गई हैं। मार-पीट और गाली-गलौच हो रही हैं। इतना सुनते ही उल्लुओं के सेनापति ने राजा से कहा “महाराज, यही मौका हैं कौओं पर आक्रमण करने का। इस समय हम उन्हें आसानी से हरा देंगे।”

उल्लुओं के राजा अरिमर्दन को सेनापति की बता सही लगी। उसने तुरंत आक्रमण का आदेश दे दिया। बस फिर क्या था हजारों उल्लुओं की सेना बरगद के पेड पर आक्रमण करने चल दी। परन्तु वहां एक भी कौआ नहीं मिला।

मिलता भी कैसे? योजना के अनुसार मेघवर्ण सारे कौओं को लेकर ॠष्यमूक पर्वत की ओर कूच कर गया था। पेड खाली पाकर उल्लुओं के राजा ने थूका “कौए हमारा सामना करने की बजाए भाग गए। ऐसे कायरों पर हजार थू।” सारे उल्लू ‘हू हू’ की आवाज निकालकर अपनी जीत की घोषणा करने लगे। नीचे झाडियों में गिरा पडा स्थिरजीवी कौआ यह सब देख रहा था। स्थिरजीवी ने कां-कां की आवाज निकाली। उसे देखकर जासूस उल्लू बोला “अरे, यह तो वही कौआ हैं, जिसे इनका राजा धक्का देकर गिरा रहा था और अपमानित कर रहा था।’

उल्लुओं का राजा भी आया। उसने पूछा “तुम्हारी यह दुर्दशा कैसे हुई?” स्थिरजीवी बोला “मैं राजा मेघवर्ण का नीतिमंत्री था। मैंने उनको नेक सलाह दी कि उल्लुओं का नेतॄत्व इस समय एक पराक्रमी राजा कर रहे हैं। हमें उल्लुओं की अधीनता स्वीकार कर लेनी चाहिए। मेरी बात सुनकर मेघवर्ण क्रोधित हो गया और मुझे फटकार कर कौओं की जाति से बाहर कर दिया। मुझे अपनी शरण में ले लीजिए।”

उल्लुओं का राजा अरिमर्दन सोच में पड गया। उसके स्याने नीति सलाहकार ने कान में कहा “राजन, शत्रु की बात का विश्वास नहीं करना चाहिए। यह हमारा शत्रु हैं। इसे मार दो।” एक चापलूस मंत्री बोला “नहीं महाराज! इस कौए को अपने साथ मिलाने में बडा लाभ रहेगा। यह कौओं के घर के भेद हमें बताएगा।”

राजा को भी स्थिरजीवी को अपने साथ मिलाने में लाभ नजर आया अओ उल्लू स्थिरजीवी कौए को अपने साथ ले गए। वहां अरिमर्दन ने उल्लू सेवकों से कहा “स्थिरजीवी को गुफा के शाही मेहमान कक्षमें ठहराओ। इन्हें कोई कष्ट नहीं होना चाहिए।”

स्थिरजीवी हाथ जोडकर बोला “महाराज, आपने मुझे शरण दी, यही बहुत हैं। मुझे अपनी शाही गुफा के बाहर एक पत्थर पर सेवक की तरह ही रहने दीजिए। वहां बैठकर आपके गुण गाते रहने की ही मेरी इच्छा हैं।” इस प्रकार स्थिरजीवी शाही गुफा के बाहर डेरा जमाकर बैठ गया।

गुफा में नीति सलाहकार ने राजा से फिर से कहा “महाराज! शत्रु पर विश्वास मत करो। उसे अपने घर में स्थान देना तो आत्महत्या करने समान हैं।” अरिमर्दन ने उसे क्रोध से देखा “तुम मुझे ज्यादा नीति समझाने की कोशिश मत करो। चाहो तो तुम यहां से जा सकते हो।” नीति सलाहकार उल्लू अपने दो-तीन मित्रों के साथ वहां से सदा के लिए यह कहता हुआ “विनाशकाले विपरीत बुद्धि।”

कुछ दिनों बाद स्थिरजीवी लकडियां लाकर गुफा के द्वार के पास रखने लगा “सरकार, सर्दियां आने वाली हैं। मैं लकडियों की झोपडी बनाना चाहता हूं ताकि ठंड से बचाव हो।’ धीरे-धीरे लकडियों का काफी ढेर जमा हो गया। एक दिन जब सारे उल्लू सो रहे थे तो स्थिरजीवी वहां से उडकर सीधे ॠष्यमूक पर्वत पर पहुंचा, जहां मेघवर्ण और कौओं सहित उसी की प्रतीक्षा कर रहे थे। स्थिरजीवी ने कहा “अब आप सब निकट के जंगल से जहां आग लगी हैं एक-एक जलती लकडी चोंच में उठाकर मेरे पीछे आइए।”

कौओं की सेना चोंच में जलती लकडियां पकड स्थिरजीवी के साथ उल्लुओं की गुफाओं में आ पहुंचा। स्थिरजीवी द्वारा ढेर लगाई लकडियों में आग लगा दी गई। सभी उल्लू जलने या दम घुटने से मर गए। राजा मेघवर्ण ने स्थिरजीवी को कौआ रत्न की उपाधि दी।

सीखः शत्रु को अपने घर में पनाह देना अपने ही विनाश का सामान जुटाना हैं।

Disclaimer:

The stories presented in this collection, whether in Hindi or English, are works of fiction created solely for entertainment purposes. Any resemblance to real events, persons, or places is purely coincidental. The views and opinions expressed in these stories belong to the fictional characters and do not necessarily reflect the views of the author. Readers are advised to use their discretion while reading and to interpret the content within the context of storytelling.


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